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Wednesday, February 10, 2010
बूंद-बूंद भरे सागर
नीतू सिंह
चेतना गाला सिन्हा.... जिसने न सिर्फ ग्रामीण महिलाओं को जागृत किया बल्कि उन्हें जीने का नया आयाम भी दिया। उन्होंने महाराष्ट के सतारा जिले की ग्रामीण महिलाओं को अपने दम पर इस मुकाम तक पहुंचाया कि आज जिसकी बदौलत तकरीबन सवा लाख से भी ज्यादा ग्रामीण महिलाएं अपनी रोजी-रोटी कमा रही हैं। उन्होंने महाराष्ट के सतारा जिले के मसवाड गांव में स्वयंसेवी ग्रामीण महिलाओं की मदद से 1997 में एक ऐसे बैंक की शुरूआत की।
जिसका उद्देश्य उस गांव की अनपढ़ महिलाओं को आर्थिक मदद व बचत के लिए प्रेरित करना था।
जमीन से जुड़ी हस्ती
चेतना सिन्हा उच्च शिक्षा प्राप्त लेकिन जमीन से जुड़ी हुई महिला हैं। एक अर्थशास्त्री, एक किसान, एक समाजशास्त्री इन सभी विशेषणों पर चेतना खरी उतरती हैं। भारतीय ग्रामीण क्षेत्रों के कई पिछड़े और सूखा प्रभावित इलाकों में इन्होंने जिस लगन और मेहनत से सामाजिक बदलाव लाया वह सराहनीय है। मनदेशी महिला सहकारी लिमिटेड, एक माइक्रो एंटरप्राइज डेवलपमेंट बैंक की संस्थापक और अध्यक्ष चेतना गाला सिन्हा ने ग्रामीण महिलाओं के लिए जो विकासात्मक कदम उठाए हैं, उसके लिए उन्हें भारतीय सरकार और विभिन्न गैर सरकारी संस्थाओं की ओर से सम्मानित भी किया गया। चेतना जी ने मनदेशी फाउंडेशन, जो कि एक गैर सरकारी संस्थान है, की स्थापना भी की।
जीवन का सफर
चेतना जी का जन्म मुंबई में हुआ। वह मुंबई में ही पली बढ़ी और वहीं शिक्षा दीक्षा भी प्राप्त की। चेतना ने मुंबई विश्वविद्यालय से साल 1982 में अर्थशास्त्र और वाणिज्य में मास्टर ऑफ आर्ट्स किया। और साल 2002 में वह येल वल्र्ड फैलो भी रहीं। उसके बाद वे अपने छात्र जीवन से ही कई सामाजिक आंदोलनों में हिस्सा लेने लगीं। इसी दौरान वे जयप्रकाश नारायण के आंदोलन से जुड़ी। इस आंदोलन में उन्होंने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया।
इस आंदोलन में उन्होंने सीखा कि समाज में बदलाव किस तरह लाया जाता है? इस बदलाव के लिए लोगों को एक साथ किस तरह जोड़ा जाता है? उनमें कैसे एकजुटता पैदा की जाती है? यह सब सीखते-सीखते वह यह धारणा बना चुकी थी कि एक दिन वह भी ऐसा ही कोई कार्य अवश्य शुरू करेंगी जिससे समाज में बदलाव लाया जा सके और ग्रामीण महिलाओं की मदद की जा सके। इसी दौरान उनकी भेंट किसान आंदोलन से जुड़े विजय सिन्हा जी से हुई, जिसकी बदौलत वह किसान आंदोलन से भी जुड़ सकी। विजय जी संपर्क में आकर वह उनसे इतनी प्रभावित हुईं कि उन्हें अपना जीवन साथी बनाने का फैसला तक कर डाला। विजय एक किसान परिवार से संबंध रखते थे और इस वजह से दोनों में काफी असमानताएं थी। सबसे बड़ी असमानता तो उनकी जाति थी। इन सभी असमानताओं को चेतना जी ने चुनौती मानकर स्वीकार किया और जिंदगी की कठिनाइयों का डटकर मुकाबला किया।
नया करने की चाहत
इसी दौरान चेतना ने न जाने जीवन के कितने ही उतार चढ़ावों को देखा। किसान आंदोलन में थी तब उन्होंने महसूस किया कि कृषि क्षेत्र के हालात काफी गंभीर थे, कोई भी व्यक्ति खेती में निवेश करना नहीं चाहता था। इसी आंदोलन के दौरान उन्होंने ग्रामीण कृषक महिलाओं की भी स्थिति देखी और उनकी मेहनत को भी देखा।
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