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Wednesday, February 10, 2010
महिलाओं के खिलाफ हिंसा और सीआरपीसी एक्ट
महिलाओं के खिलाफ हिंसा और सीआरपीसी एक्ट
नीतू सिंह
अपराध प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) में नए संशोधनों के तहत अब बलात्कार समेत तमाम यौन अपराधों की सुनवाई, दो महीने के भीतर पूरी की जाएगी। 31 दिसम्बर 09 से प्रभावी संशोधन के अनुसार इसमें सभी पक्षों को अदालत के आदेश के खिलाफ अपील का अधिकार होगा। इस नये संसोधन से शिकायतकर्ताओं के लिए बड़ी राहत मिलेगी, क्योंकि अभी तक ऐसे मामलों में केवल राज्य ही आदेश के खिलाफ अपील दायर कर सकता था।
सीआरपीसी एक्ट में किए गए संशोधनों पर गृह मंत्रालय से एक बयान जारी किया गया। जिसमें कहा गया है कि पीडि़तों को अभियोजन में मदद के लिए अब वकील करने की अनुमति होगी। बयान में यह भी कहा गया है कि बलात्कार पीडि़त का बयान उसके घर में दर्ज किया जाएगा और जहां तक मुमकिन होगा, कोई महिला पुलिस अधिकारी ही पीडि़त के माता-पिता या अभिभावक या सामाजिक कार्यकर्ता की मौजूदगी में बयान दर्ज करेगी। संशोधनों के तहत बयानों को ऑडियो-वीडियो इलेक्ट्रॉनिक साधनों के जरिए भी दर्ज किया जाएगा।
सीआरपीसी एक्ट के संशोधन में एक नयी धारा 357-ए शामिल की गई है जो बाध्यकारी है। इसमें प्रत्येक राज्य सरकार से कहा गया है कि अपराध से पीडि़त व्यक्ति या उसके आश्रितों को मुआवजा देने के लिए एक योजना बनाएं। गौरतलब है कि अपराध प्रक्रिया संहिता में वर्ष 2006 में संशोधन किया गया था लेकिन 31 दिसम्बर वर्ष 2009 से पहले संशोधन अधिनियम प्रभावी नहीं हुआ था। हालांकि पुलिस अधिकारी द्वारा किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने का अधिकार और स्थगन मंजूर करने या इससे इनकार करने के अदालत के अधिकार संबंधी तीन प्रावधानों धारा 5, 6 और 21-बी को फिलहाल लागू नहीं किया गया है। इन प्रावधानों पर कुछ आपत्तियां आईं थीं, इसलिए इन प्रावधानों को विधि आयोग के पास भेज दिया गया। विधि आयोग ने इस पर विचार-विमर्श करके अपनी रिपोर्ट दी थी। इस रिपोर्ट के आधार पर कैबिनेट ने एक संशोधन विधेयक को मंजूरी दी है। संसद के पिछले सत्र में इसे पेश नहीं किया जा सका था।
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